भारतीय दण्ड संहिता १८६०
आपराधिक न्यासभंग (विश्वासघात) के विषय में :
धारा ४०५ :
आपराधिक न्यासभंग (विश्वासघात) :
(See section 316 of BNS 2023)
जो कोई संपत्ति या संपत्ति पर कोई अख्तयार किसी प्रकार अपने को न्यस्त (सौपना/सुपूर्द करना) किए जाने पर उस संपत्ति को बेईमानी से दुर्विनियोग कर लेता है, या उसे अपने उपयोग में संपरिवर्तित कर लेता है, या जिस प्रकार ऐसा न्यास (विश्वास) निर्वहन किया जाना है, उसको विहित करने वाली विधि के किसी निदेश का, या ऐसे न्यास (विश्वास) के निर्वहन के बारे में उसके द्वारा की गई किसी अभिव्यक्त या विवक्षित वैध संविदा का अतिक्रमण करके बेईमानी से उस संपत्ति का उपयोग या व्ययन करता है, या जानबूझकर किसी अन्य व्यक्ती का ऐसा करना सहन करता है, वह आपराधिक न्यासभंग (विश्वासघात) करता है ।
१.(२.(स्पष्टीकरण १) :
जो व्यक्ती ३.(किसी स्थापन का नियोजक होते हुए, चाहे वह स्थापन कर्मचारी भविष्य निधि और प्रकीर्ण उपबंध अधिनियम, १९५२ (१९५२ का १९) की धारा १७ के अधीन छूट प्राप्त है या नहीं), तत्समय प्रवृत्त किसी विधि द्वारा स्थापित भविष्य निधि या कुटुंब पेंशन-निधि में जमा करने के लिए कर्मचारी-अभिदाय की कटौति कर्मचारी को संदेय मजदूरी में से करता है उसके बारे में यह समझा जाएगा कि उसके द्वारा इस प्रकार कटौती किए गए अभिदाय की रकम उसे न्यस्त (सौपना) कर दी गई है और यदि वह उक्त निधि में ऐसे अभिदार का संदाय करने में, उक्त विधि का अतिक्रमण करके व्यतिक्रम करेगा तो उसके बारे में यह समझा जाएगा कि उसने यथापूर्वोक्त विधि के किसी निदेश का अतिक्रमण करके उक्त अभिदार की रकम का बेईमानी से उपयोग किया है ।
४.(स्पष्टीकरण २ :
जो व्यक्ती, नियोजक होते हुए, कर्मचारी राज्य बीमा अधिनियम, १९४८ (१९४८ का ३४) के अधीन स्थापित कर्मचारी राज्य बीमा निगम द्वारा धारित और शासित कर्मचारी राज्य बीमा निगम निधि में जमा करने के लिए कर्मचारी को संदेय मजदूरी में से कर्मचारी-अभिदाय की कटौती करता है, उसके बारे में यह समझा जाएगा कि उसे अभिदाय की वह रकम न्यस्त (सौपना) कर दी गई है, जिसकी उसने इस प्रकार कटौती की है और यदि वह उक्त निधि में ऐसे अभिदाय के संदाय करने में, उक्त अधिनियम का अतिक्रमण करके, व्यतिक्रम करता है, तो उसके बारे में यह समझा जाएगा कि उसने यथापूर्वोक्त विधि के किसी निदेश का अतिक्रमण करके उक्त अभिदाय की रकम का बेईमानी से उपयोग किया है ।)
दृष्टांत :
क) (क) एक मृत व्यक्ति की बिल का निष्पादक होते हुए उस विधि की, जो चीजबस्त को बिल के अनुसार विभाजित करने के लिए उसको निदेश देती है, बेईमानी से अवज्ञा करता है, और उस चीजबस्त को अपने उपयोग के लिए विनियुक्त कर लेता है । (क) ने आपराधिक न्यासभंग किया है ।
ख) (क) भांडागारिक है । (य) यात्रा को जाते हुए अपना फर्नीचर (क) के पास उस संविदा के अधीन न्यस्त कर जाता है कि वह भांडागार के कमरे के लिए ठहराई गई राशि के दे दिए जाने पर लौटा दिया जाएगा । (क) उस माल को बेईमानी से बेच देता है । (क) ने आपराधिक न्यासभंग किया है ।
ग) (क) जो कलकत्ता में निवास करता है, (य) का, जो दिल्ली में निवास करता है अभिकर्ता है । (क) और (य) के बीच यह अभिव्यक्त या विवक्षित संविदा है कि (य) द्वारा (क) को प्रेषित सब राशियां (क) द्वारा (य) के निदेश के अनुसार विनिहित की जाएगी । (य), (क) को इन निदेशों के साथ एक लाख रुपए भेजता है कि उसको कंपनी पत्रों में विनिहित किया जाए । (क) उन निदेशों की बेईमानी से अवज्ञा करता है और उस धन को अपने कारबार के उपयोग में ले आता है । (क) ने आपराधिक न्यासभंग किया है ।
घ) किंतु यदि पिछले दृष्टांत में (क) बेईमानी से नहीं प्रत्युत सद्भावपूर्वक यह विश्वास करते हुए कि बैंक आफ बंगाल में अंश धारण करना (य) के लिए अधिक फायदाप्रद होगा, (य) के निदेशों की अवज्ञा करता है, और कंपनी पत्र खरीदने के बजाए (य) के लिए बैंक आफ बंगाल के अंश खरीदता है, तो यद्यपि (य) का हानि हो जाए और उस हानि के कारण, वह (क) के विरुद्ध सिविल कार्यवाही करने का हकदार हो, तथापि, यत: (क) ने बेईमानी से कार्य नहीं किया है, उसने आपराधिक न्यासभंग नहीं किया है ।
ङ) एक राजस्व आफिसर, (क) के पास लोक धन न्यस्त किया गया है और यह उस सब धन को, जो उसके पास न्यस्त किया गया है, एक निश्चित खजाने में जमा कर देने के लिए या तो विधि द्वारा निर्देशित है या सरकार के साथ अभिव्यक्त या विवक्षित संविदा द्वारा आबद्ध है । (क) उस धन को बेईमानी से विनियोजित कर लेता है । (क) ने आपराधिक न्यासभंग किया है ।
च) भूमि से या जल से ले जाने के लिए (य) ने (क) के पास, जो एक वाहक है, संपत्ति न्यस्त की है । (क) उस संपत्ति का बेइमानी से दुर्विनियोग कर लेता है । (क) ने आपराधिक न्यासभंग किया है ।
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१. १९७३ के अधिनियम सं० ४० की धारा ९ द्वारा अन्त:स्थापित ।
२. १९७५ के अधिनियम सं० ३८ की धारा ९ द्वारा स्पष्टीकरण को स्पष्टीकरण १ के रुप में पुनसंख्याकित किया गया ।
३. १९८८ के अधिनियम सं० ३३ की धारा २७ द्वारा नियोजक होते हुए के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
४. १९७५ के अधिनियम सं० ३८ की धारा ९ द्वारा अन्त:स्थापित ।
