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Ipc धारा २२० : प्राधिकार वाले व्यक्ती द्वारा, जो यह जानते है कि वह विधि के प्रतिकूल कार्य कर रहा है, विचारण के लिए परिरोध करने के लिए सुपुर्दगी :

भारतीय दण्ड संहिता १८६०
धारा २२० :
प्राधिकार वाले व्यक्ती द्वारा, जो यह जानते है कि वह विधि के प्रतिकूल कार्य कर रहा है, विचारण के लिए परिरोध करने के लिए सुपुर्दगी :
(See section 258 of BNS 2023)
अपराध का वर्गीकरण :
अपराध : प्राधिकार वाले व्यक्ती द्वारा, जो यह जानते है कि वह विधि के प्रतिकूल कार्य कर रहा है, विचारण के लिए परिरोध करने के लिए सुपुर्दगी ।
दण्ड :सात वर्ष के लिए कारावास या जर्माना, या दोनों ।
संज्ञेय या असंज्ञेय :असंज्ञेय ।
जमानतीय या अजमानतीय :जमानतीय ।
शमनीय या अशमनीय : अशमनीय ।
किस न्यायालय द्वारा विचारणीय है :प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट ।
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जो कोई किसी ऐसे पद पर होते हुए, जिसके व्यक्तीयों को विचारण या परिरोध के लिए सुपुर्दगी करने का, या व्यक्तीयों को परिरोध में रखने का उसे वैध प्राधिकार हो किसी व्यक्ती को उस प्राधिकार के प्रयोग में यह जानते हुए भ्रष्टतापुर्वक या विद्वेषपूर्वक विचारण या परिरोथ के लिए सुपुर्द करेगा या परिरोध में रखेगा कि ऐसा करने में वह विधि के प्रतिकूल कार्य कर रहा है, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से दण्डित किया जाएगा, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा ।

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