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Ipc धारा १८५ : लोक सेवक के विधिपूर्ण प्राधिकार द्वारा विक्रय के लिए प्रस्थापित की गई संपत्ति का अवैध क्रय (खरिद) या उसके लिए अवैध बोली लगाना :

भारतीय दण्ड संहिता १८६०
धारा १८५ :
लोक सेवक के विधिपूर्ण प्राधिकार द्वारा विक्रय के लिए प्रस्थापित की गई संपत्ति का अवैध क्रय (खरिद) या उसके लिए अवैध बोली लगाना :
(See section 220 of BNS 2023)
अपराध का वर्गीकरण :
अपराध : विधिपूर्वक प्राधिकृत विक्रय में सम्पत्ति के लिए ऐसे व्यक्ति का, जो उसे क्रय करने के लिए किसी विधिक असमर्थता के अधीन है, बोली लगाना या उपगत बाध्यताओं को पूरा करने का आशय न रखते हुए बोली लगाना ।
दण्ड :एक मास के लिए कारावास, या दो सौ रुपये का जुर्माना, या दोनों ।
संज्ञेय या असंज्ञेय :असंज्ञेय ।
जमानतीय या अजमानतीय :जमानतीय ।
शमनीय या अशमनीय : अशमनीय ।
किस न्यायालय द्वारा विचारणीय है :कोई मजिस्ट्रेट ।
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जो कोई संपत्ति के किसी ऐसे विक्रय में, जो लोक सेवक के नाते लोक सेवक के विधिपूर्ण प्राधिकार द्वारा विक्रय के लिए प्रस्थापित की गई हो, किसी ऐसे व्यक्ति के निमित्त जाहे वह व्यक्ति वह स्वयं हो, या कोई अन्य हो, किसी संपत्ती का क्रय (खरिद) करेगा या संपत्ति के लिए बोली लगाएगा, जिसके बारे में वह जानता हो कि वह व्यक्ति उस विक्रय में उस सम्पत्ति के क्रय करने के बारे में किसी विधि असमर्थता के अधीन है या ऐसी संपत्ती के लिए वह आशय रखकर बोली लगाएगा कि ऐसी बोली लगाने से जिन बाध्यताओं के अधि वह अपने आप को डाल रहा है उन्हे उसे पूरा नहीं करना है, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से दण्डित किया जाएगा, जिसकी अवधि एक मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो दो सौ रुपये तक का हो सेकगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा ।

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