भारतीय दण्ड संहिता १८६०
धारा ३०७ :
हत्या करने का प्रयत्न :
(See section 109 of BNS 2023)
अपराध का वर्गीकरण :
अपराध : हत्या करने का प्रयत्न ।
दण्ड :दस वर्ष के लिए कारावास और जुर्माना ।
संज्ञेय या असंज्ञेय :संज्ञेय ।
जमानतीय या अजमानतीय :अजमानतीय ।
शमनीय या अशमनीय : अशमनीय ।
किस न्यायालय द्वारा विचारणीय है :सेशन न्यायालय ।
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अपराध : यदि ऐसे कार्य से किसी व्यक्ति को उपहति कारित हो जाए ।
दण्ड :आजीवन करावास, या दस वर्ष के लिए कारावास और जुर्माना ।
संज्ञेय या असंज्ञेय :संज्ञेय ।
जमानतीय या अजमानतीय :अजमानतीय ।
शमनीय या अशमनीय : अशमनीय ।
किस न्यायालय द्वारा विचारणीय है :सेशन न्यायालय ।
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अपराध : आजीवन सिद्धदोष द्वारा हत्या का प्रयत्न, यदि उपहति कारित हो जाए ।
दण्ड :मृत्यु, या दस वर्ष के लिए कारावास और जुर्माना ।
संज्ञेय या असंज्ञेय :संज्ञेय ।
जमानतीय या अजमानतीय :अजमानतीय ।
शमनीय या अशमनीय : अशमनीय ।
किस न्यायालय द्वारा विचारणीय है :सेशन न्यायालय ।
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जो कोई किसी कार्य को इस आशय से या ज्ञान से और ऐसी परिस्थितियों में करेगा कि यदि वह उस कार्य द्वारा मृत्यु कारित कर देता है तो वह हत्या का दोषी होता, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से दण्डित किया जाएगा, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, और जुर्माने से भी दण्डित किया जाएगा, और यदि ऐसे कार्य द्वारा किसी व्यक्ती को उपहति कारित हो जाए, तो वह अपराधी या तो १.(आजीवन कारावास) से या ऐतस्मिनपूर्व (इसमें इसके पहले) वर्णित दण्ड से दण्डनीय होगा ।
आजीवन सिद्धदोष द्वारा प्रयत्न :
२.(जबकि इस धारा में वर्णित अपराध करने वाला कोई व्यक्ती १.(आजीवन कारावास) के दण्डादेश के अधीन हो, तब यदि उपहति कारित हुई हो, तो वह मृत्यु से दण्डित किया जाएगा ।)
दृष्टांत :
(क) (य) का वध करने आशय से (क) उस पर ऐसी परिस्थितियों में गोली चलाता है कि यदि मृत्यु हो जाती, तो (क) हत्या का दोषी होता । (क) इस धारा के अधीन दण्डनीय है ।
ख) (क) कोमल वयस के शिशु की मृत्यु करने के आशय से उसे एक निर्जन स्थान में अरक्षित छोड देता है । (क) ने उस धारा द्वारा परिभाषित अपराध किया है, यद्यपि परिणामस्वरुप उस शिशु की मृत्यु नहीं होती ।
ग) (य) की हत्या का आशय रखते हुए (क) एक बन्दूक खरीदता है और उसको भरता है । (क) ने अभी तक अपराध नहीं किया है । (य) पर (क) बन्दूक चलाता है । उसने इस धारा में परिभाषित अपराध किया है, और यदि इस प्रकार गोली मार कर वह (य) को घायल कर देता है, तो वह इस धारा ३.(के प्रथम पैरे) के पिछले भाग द्वारा उपबन्धित दण्ड से दण्डनीय है ।
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१. १९५५ के अधिनियम सं० २६ की धारा ११७ और अनुसूची द्वारा आजीवन निर्वासन के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
२. १८७० के अधिनियम सं० २७ की धारा ११ द्वारा जोडा गया ।
३. १८९१ के अधिनियम सं० १२ की धारा २ और अनुसूची २ द्वारा अन्त:स्थापित ।