Ipc धारा २१२ : अपराधी को संश्रय (आसरा) देना :

भारतीय दण्ड संहिता १८६०
धारा २१२ :
अपराधी को संश्रय (आसरा) देना :
(See section 249 of BNS 2023)
अपराध का वर्गीकरण :
अपराध : अपराध को संश्रय देना, यदि अपराध मृत्यु से दंडनीय है ।
दण्ड :पाँच वर्ष के लिए कारावास और जुर्माना ।
संज्ञेय या असंज्ञेय :संज्ञेय ।
जमानतीय या अजमानतीय :जमानतीय ।
शमनीय या अशमनीय : अशमनीय ।
किस न्यायालय द्वारा विचारणीय है :प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट ।
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अपराध : यदि आजीवन कारावास या दस वर्ष के लिए कारावास से दंडनीय है ।
दण्ड :तीन वर्ष के लिए कारावास और जुर्माना ।
संज्ञेय या असंज्ञेय :संज्ञेय ।
जमानतीय या अजमानतीय :जमानतीय ।
शमनीय या अशमनीय : अशमनीय ।
किस न्यायालय द्वारा विचारणीय है :प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट ।
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अपराध : यदि एक वर्ष के लिए, न कि दस वर्ष के लिए कारावास से दंडनीय है ।
दण्ड :उस दीर्घतम अवधि के एक चौथाई भाग का कारावास और उस भांति का कारावास, जो उस अपराध के लिए उपबंधित है, या जर्माना, या दोनों ।
संज्ञेय या असंज्ञेय :संज्ञेय ।
जमानतीय या अजमानतीय :जमानतीय ।
किस न्यायालय द्वारा विचारणीय है :प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट ।
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जबकि कोई अपराध किया जा चुका हो, तब जो कोई किसी ऐसे व्यक्ती को, जिसके बारेमें वह जानता हो या विश्वास करने का कारण रखता हो कि वह अपराधी है, वैध दण्ड से प्रतिच्छादित करने के आशय से संश्रय देगा या छिपाएगा ;
यदि वह अपराध मृत्यु से दण्डनीय हो :
यदि वह अपराध मृत्यु से दण्डनीय हो तो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से दण्डित किया जाएगा, जिसकी अवधि पाँच वर्ष तक की हो सकेगी, और जुर्माने से भी दण्डित किया जाएगा ;
यदि वह अपराध आजीवन कारावास से या कारावास से दण्डनीय हो :
और यदि वह अपराध १.(आजीवन कारावास) से, या दस वर्ष तक के कारावास से दण्डनीय हो, तो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से दण्डित किया जाएगा,जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा ;
और यदी वह अपराध एक वर्ष तक, न कि दस वर्ष तक के कारावास से दण्डनीय हो, तो वह उस अपराध के लिए उपबंधित भांति के कारावास से दण्डनीय होगा, जिसकी अवधि उस अपराध के लिए उपबंधित कारावास की दीर्घतम अवधि की एक चौथाई तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डनीय होगा ।
२.(इस धारा में अपराध के अन्तर्गत ३.(भारत) से बाहर किसी स्थान पर किया गया ऐसा कार्य आता है, जो यदि ३.(भारत) के भितर या ३.(भारत) में किया जाता तो निम्नलिखित धारा, अर्थात ३०२, ३०४, ३८२, ३९२, ३९३, ३९४, ३९५, ३९६, ३९७, ३९८, ३९९, ४०२, ४३५, ४३६, ४४९, ४५०, ४५७, ४५८, ४५९ और ४६० में से किसी धारा के अधीन दण्डनीय होता और हर एक ऐसा कार्य इस धारा के प्रयोजनों के लिए ऐसे दण्डनीय समझा जाएगा, जैसे मानो अभियुक्त व्यक्ती उसे ३.(भारत) में करने का दोषी था ।)
अपवाद :
इस उपबंध का विस्तार किसी ऐसे मामले पर नहीं है, जिसमें अपराधी को संश्रय (आसरा) देना या छिपाना उसके पति या पत्नी द्वारा हो ।
दृष्टांत :
(क) यह जानते हुए कि (ख) ने डकैती की है, (ख) को वैध दंड से प्रतिच्छादित करने के लिए जानते हुए छिपा लेता है । यहां, (ख) १.(आजीवन कारावास) से दंडनीय है, (क) तीन वर्ष से अनधिक अवधि के लिए दोनों में से किसी भांति के कारावास से दंडनीय है और जुर्माने से भी दंडनीय है ।
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१. १९५५ के अधिनियम सं० २६ की धारा ११७ और अनुसूची द्वारा आजीवन निर्वासन के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
२. १८९४ के अधिनियम सं० ३ की धारा ७ द्वारा अन्त:स्थापित ।
३. विधि अनुकूलन आदेश १९४८, विधि अनुकूलन आदेश १९५० और १९५१ के अधिनियम सं० ३ की धारा ३ और अनुसूची द्वारा ब्रिटिश भारत के स्थान पर प्रतिस्थापित ।

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