Ipc धारा १८१ : शपथ दिलाने या प्रतिज्ञान (शपथ लिए बिना सत्यनिष्ठ घोषणा करना) कराने के लिए प्राधिकृत लोक सेवक के, या व्यक्ति के समक्ष शपथ या प्रतिज्ञान (शपथ लिए बिना सत्यनिष्ठ घोषणा करना) पर मिथ्या कथन :

भारतीय दण्ड संहिता १८६०
धारा १८१ :
शपथ दिलाने या प्रतिज्ञान (शपथ लिए बिना सत्यनिष्ठ घोषणा करना) कराने के लिए प्राधिकृत लोक सेवक के, या व्यक्ति के समक्ष शपथ या प्रतिज्ञान (शपथ लिए बिना सत्यनिष्ठ घोषणा करना) पर मिथ्या कथन :
(See section 216 of BNS 2023)
अपराध का वर्गीकरण :
अपराध : लोक सेवक से शपथ पर जानते हुए सत्य के रुप में ऐसा कथन करना जो मिथ्या है ।
दण्ड :तीन वर्ष के लिए कारावास, और जुर्माना ।
संज्ञेय या असंज्ञेय :असंज्ञेय ।
जमानतीय या अजमानतीय :जमानतीय ।
शमनीय या अशमनीय : अशमनीय ।
किस न्यायालय द्वारा विचारणीय है :प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट ।
———-
जो कोई किसी लोक सेवक या किसी अन्य व्यक्ती से, जो ऐसे शपथ १.(दिलाने या प्रतिज्ञान) (शपथ लिए बिना सत्यनिष्ठ घोषणा करना ) देने के लिए विधि द्वारा प्राधिकृत हो, किसी विषय पर सत्य कथन करने के लिए शपथ १.(या प्रतिज्ञान) द्वारा वैध रुप से आबद्ध (बंधा हुआ) होते हुए ऐसे लोक सेवक या यथापुर्वोक्त अन्य व्यक्ती से उस विषय के संबंध में कोई ऐसा कथन करेगा, जो मिथ्या है, और जिसके मिथ्या होने का या तो उसे ज्ञान है, या विश्वास है या जिसके सत्य होने का उसे विश्वास नहीं है, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से दण्डित किया जाएगा, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा ।
———-
१. १८७३ के अधिनियम सं० १० की धारा १५ द्वारा अन्त:स्थापित ।

Leave a Reply