भारतीय दण्ड संहिता १८६०
धारा १६६ क :
१.(कोई लोकसेवक, जो विधि के अधीन के निदेश की अवज्ञा करता है :
(See section 199 of BNS 2023)
अपराध का वर्गीकरण :
अपराध : लोक सेवक, जो विधि के अधीन के निदेश की अवज्ञा करता है ।
दण्ड :कम से कम छह मास के लिए कारावास जो दो वर्ष तक का हो सकेगा और जुर्माना ।
संज्ञेय या असंज्ञेय :संज्ञेय ।
जमानतीय या अजमानतीय :जमानतीय ।
शमनीय या अशमनीय : अशमनीय ।
किस न्यायालय द्वारा विचारणीय है :प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट ।
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जो कोई लोक सेवक होते हुए :
क) विधि के किसी ऐसे निदेश की, जो उसको किसी अपराध या किसी अन्य मामले में अन्वेषण के प्रयोजन के लिए, किसी व्यक्ति की किसी स्थान पर उपस्थिति की अपेक्षा किए जाने से, जानते हुए अवज्ञा करता है ; अथवा
ख) किसी ऐसी रीति को, जिसेमे वह ऐसा अन्वेषण करेगा, विनियमित करने वाली विधि के किसी अन्य निदेश की, किसी व्यक्ति पर प्रतिकूल प्रभाव डालने के लिए, जानते हुए अवज्ञा करता है; अथवा
ग) दण्ड प्रक्रिया संहिता, १९७३ (१९७४ का २) की धारा १५४ की उपधारा (१) के अधीन, धारा ३२६ क, धारा ३२६ ख, धारा ३५४, धारा ३५४ ख, धारा ३७०, धारा ३७० ख, धारा ३७६, धारा ३७६ क, २.(धारा ३७६ कख, धारा ३७६ ख, धारा ३७६ ग, धारा ३७६ घ, धारा ३७६ घक, धारा ३७६ घख,) धारा ३७६ ङ, या धारा ५०९ (सब धारा भारतीय दण्ड संहिता) के अधीन दंडनीय संज्ञेय अपराध के संबंध में उसे दी गई किसी सूचना को लेखबद्ध करने में असफल रहता है;
वह कठोर कारावास से दण्डित किया जाएगा, जिसकी अवधि छह मास से कम नहीं होगी किन्तु जो दो वर्ष तक की हो सेकगी, और जुर्माने से भी दंडनीय होगा ।)
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१. दण्ड विधि (संशोधन) अधिनियम २०१३ (२०१३ का १३), धारा ३ द्वारा अन्त:स्थापित (३-२-२०१३ से प्रभावित) । भारत का राजपत्र, असाधारण, भाग २, खण्ड १ दिनांक २-४=२०१३ पृष्ठ १-१६ पर अंग्रेजी में प्रकाशित ।
२. दंड विधि (संशोधन) अधिनियम, २०१८ (क्र. २२ सन २०१८) की धारा २ द्वारा प्रतिस्थापित (भारत का राजपत्र, असाधारण, भाग-२, खंड १, दिनांक ११-८-२०१८) पर अंग्रेजी में प्रकाशित ।