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Hsa act 1956 धारा ३ : परिभाषाएं और निर्वचन :

हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम १९५६
धारा ३ :
परिभाषाएं और निर्वचन :
(१) इस अधिनियम में जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो –
(a)(क) गोत्रज – एक व्यक्ति दूसरे का गोत्रज कहा जाता है यदि वे दोनों केवल पुरुषों के माध्यम से रक्त या दत्तक द्वारा एक दूसरे से सम्बन्धित हों;
(b)(ख) अलियसन्तान विधि से वह विधि-पद्धति अभिप्रेत है जो ऐसे व्यक्ति को लागू है जो यदि यह अधिनियम पारित न किया गया होता तो मद्रास अलियसन्तान ऐक्ट, १९४९ ( मद्रास ऐक्ट १९४९ का ९ ) द्वारा या रूढग़ित अलियसन्तान विधि द्वारा उन विषयों के बारे में शासित होता जिनके लिए इस अधिनियम में उपबन्ध किया गया है;
(c)(ग) बन्धु – एक व्यक्ति दूसरे का बन्धु कहा जाता है यदि वे दोनों रक्त या दत्तक द्वारा एक दूसरे से सम्बन्धित हों किन्तु केवल पुरुषों के माध्यम से नहीं;
(d)(घ) रुढि और प्रथा पद ऐसे किसी भी नियम का संज्ञान कराते हैं जिसने दीर्घकाल तक निरन्तर और एकरूपता से अनुपालित किए जाने के कारण किसी स्थानीय क्षेत्र, जनजाति, समुदाय, समूह या कुटुम्ब के हिन्दुओं में विधि का बल अभिप्राप्त कर लिया हो :
परन्तु यह तब जब कि नियम निश्चित हो और अयुक्तियुक्त या लोक नीति के विरुद्ध न हो: तथा
परन्तु यह और भी कि ऐसे नियम की दशा में जो एक कुटुम्ब को ही लागू हो, उसकी निरन्तरता उस कुटुम्ब द्वारा बन्द न कर दी गई हो;
(e)(ङ) पूर्णरक्त, अर्धरक्त और एकोदररक्त –
(एक) कोई भी दो व्यक्ति एक दूसरे से पूर्णरक्त द्वारा सम्बन्धित कहे जाते हैं जबकि वे एक ही पूर्वज से उसकी एक ही पत्नी द्वारा अवजनित हुए हों, और अर्धरक्त द्वारा सम्बन्धित कहे जाते हैं जबकि वे एक ही पूर्वज से किन्तु उसकी भिन्न पत्नियों द्वारा अवजनित हुए हों;
(दो) दो व्यक्ति एक दूसरे से एकोदररक्त द्वारा सम्बन्धित कहे जाते हैं जब कि वे एक ही पूर्वजा से किन्तु उसके भिन्न पतियों से अवजनित हुए हों ।
स्पष्टीकरण :
इस खण्ड में पूर्वज पद के अन्तर्गत पिता आता है और पूर्वजा के अन्तर्गत माता आती है;
(f)(च) वारिस से ऐसा कोई भी व्यक्ति अभिप्रेत है चाहे वह पुरुष हो, या नारी, जो निर्वसीयत की सम्पत्ति का उत्तराधिकारी होने का इस अधिनियम के अधीन हकदार है;
(g)(छ) निर्वसीयत – कोई व्यक्ति चाहे पुरुष हो या नारी जिसने किसी सम्पत्ति के बारे में ऐसा वसीयती व्ययन न किया हो जो प्रभावशील होने के योग्य हो, वह उस सम्पत्ति के विषय में निर्वसीय मरा समझा जाता है;
(h)(ज) मरुमक्कत्तायम् विधि से विधि की वह पद्धति अभिप्रेत है जो उन व्यक्तियों को लागू है –
a)(क) जो यदि यह अधिनियम पारित न हुआ होता तो मद्रास मरुमक्कत्तायम ऐक्ट, १९३२ (मद्रास अधिनियम, १९३३ का २२), टड्ढावनकोर नायर ऐक्ट (११००के का २), टड्ढावनकोर ईषधा ऐक्ट, (११००के का ३), टड्ढावनकोर नान्जिनाड वेल्लाल ऐक्ट, (११०१के का ६), टड्ढावनकोर क्षेत्रीय ऐक्ट, (११०८के का ७), टड्ढावनकोर कृष्णवका मरुमक्कत्तायी ऐक्ट, (१११५के का ७), कोचीन मरुमक्कत्तायम ऐक्ट (१११३के का ३३) या कोचीन नायर ऐक्ट (१११३के का २९) द्वारा उन विषयों के बारे में शासित होते जिनके लिए इस अधिनियम द्वारा उपबन्ध किया गया है; अथवा
b)(ख) जो ऐसे समुदाय के हैं जिसके सदस्य अधिकतर तिरुवांकुर कोचीन या मद्रास राज्य में, १.(जैसा कि वह पहली नवम्बर, १९५६ के अव्यवहित पूर्व अस्तित्व में था) अधिवासी हैं और यदि यह अधिनियम पारित न हुआ होता तो जो उन विषयों के बारे में जिनके लिए इस अधिनियम द्वारा उपबन्ध किया गया है विरासत की ऐसी पद्धति द्वारा शासित होते जिसमें नारी परम्परा के माध्यम से अवजनन गिना जाता है;
किन्तु इसके अंतर्गत अलियसन्तान विधि नहीं आती;
(i)(झ) नंबूदिरी विधि से विधि की वह पद्धति अभिप्रेत है जो उन व्यक्तियों को लागू है जो यदि यह अधिनियम पारित न किया गया होता तो मद्रास नम्बूदिरी ऐक्ट, १९३२ ( मद्रास अधिनियम, १९३३ का २१), कोचीन नम्बूदिरी ऐक्ट (१११३के का १७) या टड्ढावनकोर मलायल्ल ब्राह्मण ऐक्ट (११०६के का ३ ) द्वारा उन विषयों के बारे में शासित होते जिनके लिए इस अधिनियम में उपबन्ध किया गया है;
(j)(ञ) सम्बन्धित से अभिप्रेत है, धर्मज द्वारा सम्बन्धित :
परन्तु अधर्मज अपत्य अपनी माता से और परस्पर एक दूसरे से सम्बन्धित समझे जाएंगे और उनके धर्मज वंशज उनसे और परस्पर एक दूसरे से सम्बन्धित समझे जाएंगे और किसी भी ऐसे शब्द का जो सम्बन्ध को अभिव्यक्त करे या संबंधी को घोषित करे तद्नुसार अर्थ लगाया जाएगा।
(२) इस अधिनियम में जब तक कि सन्दर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो, पुल्लिंग संकेत करने वाले शब्दों के अंतर्गत नारियां न समझी जाएंगी।
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१. विधि अनुकूलन (सं० ३) आदेश, १९५६ द्वारा अंत:स्थापित।

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