हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम १९५६
धारा २२ :
कुछ दशाओं में सम्पत्ति अर्जित करने का अधिमानी अधिकार :
(१) जहां कि इस अधिनियम के प्रारम्भ के पश्चात निर्वसीयत की किसी स्थावर सम्पत्ति में या उसके द्वारा चाहे स्वयं या दूसरों के साथ किए जाने वाले किसी कारबार में के हित में अनुसूची के वर्ग १ में विनिर्दिष्ट दो या अधिक वारिसों को न्यागत हों और ऐसे वारिसों में से कोई उस सम्पत्ति या कारबार अपने हित के अन्तरण की प्रस्थापना करे वहां ऐसे अन्तरित किए जाने के लिए प्रस्थापित हित को अर्जित करने का अधिमानी अधिकार दूसरे वारिसों को प्राप्त होगा।
(२) मृतक की सम्पत्ति में कोई हित जिस प्रतिफल के लिए इस धारा के अधीन अन्तरित किया जा सकेगा, वह पक्षकारों के बीच किसी करार के अभाव में इस निमित्त किए गए आवेदन पर न्यायालय द्वारा अवधारित किया जाएगा और यदि उस हित को अर्जित करने की प्रस्थापना करने वाला कोई व्यक्ति ऐसे अवधारित प्रतिफल पर उसे अर्जित करने के लिए राजी न हो तो ऐसा व्यक्ति उस आवेदन के, या उससे आनुषंगिक सब खर्चों को देने का दायी होगा ।
(३) यदि इस धारा के अधीन किसी हित के अर्जित करने की प्रस्थापना करने वाले अनुसूची के वर्ग १ में विनिर्दिष्ट दो या अधिक वारिस हों तो उस वारिस को अधिमान दिया जाएगा जो अन्तरण के लिए अधिकतम प्रतिफल देने की पेशकश करे ।
स्पष्टीकरण :
इस धारा में न्यायालय से वह न्यायालय अभिप्रेत है जिसकी अधिकारिता की सीमाओं के अन्दर वह स्थावर सम्पत्ति आस्थित है या कारबार किया जाता है और इसके अंतर्गत ऐसा कोई अन्य न्यायालय भी आता है जिसे राज्य सरकार शासकीय राजपत्र में अधिसूचना द्वारा इस निमित्त विनिर्दिष्ट करे।