हिन्दू विवाह अधिनियम १९५५
दाम्पत्य अधिकारों का प्रत्यास्थापन और न्यायिक पृथक्करण :
धारा ९ :
दाम्पत्य अधिकारों का प्रत्यास्थापना :
१.(***) जब कि पति या पत्नी ने अपने को दूसरे के साहचर्य से किसी युक्तियुक्त प्रतिहेतु के बिना प्रत्याहृत कर लिया हो तब व्यथित पक्षकार दाम्पत्य अधिकारों के प्रत्यास्थापन के लिए जिला न्यायालय में अर्जी द्वारा आवेदन कर सकेगा और न्यायालय ऐसी अर्जी में किए गए कथनों के सत्य के बारे में तथा इस बात के बारे में कि इसके लिए कोई वैध आधार नहीं है कि आवेदन मंजूर क्यों न कर लिया जाए अपना समाधान हो जाने पर दाम्पत्य अधिकारों का प्रत्यास्थापन डिक्री कर सकेगा।
२.(स्पष्टीकरण :
जहां यह प्रश्न उठता है कि क्या साहचर्य के प्रत्याहरण के लिए युक्तियुक्त प्रतिहेतु है, वहां युक्तियुक्त प्रतिहेतु साबित करने का भार उस व्यक्ति पर होगा जिसने साहचर्य से प्रत्याहरण किया है ।)
३.(***)
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१. १९७६ के अधिनियम सं० ६८ की धारा ३ द्वारा कोष्ठक औहर अंक (१) का लोप किया गया ।
२. १९७६ के अधिनियम सं० ६८ की धारा ३ द्वारा अन्त:स्थापित ।
३. १९७६ के अधिनियम सं० ६८ की धारा ३ द्वारा उपधारा (२) का लोप किया गया ।