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Fssai धारा ७४ : विशेष न्यायालय और लोक अभियोजक :

खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम २००६
धारा ७४ :
विशेष न्यायालय और लोक अभियोजक :
१) इस अधिनियम या दंड प्रक्रिया संहिता, १९७३ (१९७४ का २) में किसी बात के होते हुए भी, केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार अपनी-अपनी अधिकारिता में, यदि वह ऐसा करना लोकहित में समीचीन और आवश्यक समझती है, तो उपभोक्ता की घोर क्षति या मृत्यु से संबंधित ऐसे अपराधों के विचारण के लिए, जिनके लिए इस अधिनियम के अधीन तीन वर्ष से अधिक के कारावास का दंड विहित किया गया है, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायमूर्ति की सहमति से उतने विशेष न्यायालयों का जितने ऐसे क्षेत्र या क्षेत्रों के लिए आवश्यक हों और ऐसी अधिकारिता का प्रयोग करने के लिए जिसे अधिसूचना में विनिर्दिष्ट किया जाए, गठन कर सकेगी।
२) कोई विशेष न्यायालय, स्वप्रेरणा से या लोक अभियोजक के आवेदन पर और यदि वह ऐसा करना समीचीन या वांछनीय समझता है तो अपनी किन्हीं कार्यवाहियों के लिए, अपने आसीन होने के सामान्य स्थान से भिन्न किसी स्थान पर आसीन हो सकेगा।
३) किसी विशेष न्यायालय द्वारा इस अधिनियम के अधीन किसी अपराध के विचारण को, अभियुक्त के विरुद्ध किसी अन्य न्यायालय (जो कोई विशेष न्यायालय नहीं है) में किसी विचारण के मुकाबले अग्रता होगी और उसका ऐसे किसी अन्य मामले के विचारण पर अधिमानता देते हुए निर्णय किया जाएगा और तद्नुसार ऐसे अन्य मामले का विचारण प्रास्थागित रहेगा।
४) यथास्थिति, केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार, प्रत्येक विशेष न्यायालय के लिए किसी व्यक्ति को लोक अभियोजक के रूप में नियुक्त करेगी और वह एक से अधिक व्यक्तियों को अपर लोक अभियोजक के रूप में नियुक्त कर सकेगी :
परन्तु, यथास्थिति, केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार किसी मामले या मामलों के किसी वर्ग अथवा समूह के लिए किसी विशेष लोक अभियोजक को भी नियुक्त कर सकेगी।
५) कोई भी व्यक्ति इस धारा के अधीन लोक अभियोजक या अपर लोक अभियोजक या विशेष लोक अभियोजक के रूप में नियुक्ति के लिए तभी अर्हित होगा, जब वह कम से कम सात वर्ष तक अधिवक्ता के रूप में व्यवसाय में रहा हो या उसने संघ या राज्य के अधीन कम से कम सात वर्ष की अवधि के लिए ऐसा पद धारण किया हो, जिसमें विधि का विशेष ज्ञान अपेक्षित हो ।

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