Site icon Ajinkya Innovations

Constitution दुसरी अनुसूची : (अनुच्छेद ५९(३), ६५(३), ७५(६), ९७, १२५, १४८(३), १५८(३), १६४(५), १८६ और २२१)

भारत का संविधान
दुसरी अनुसूची :
(अनुच्छेद ५९(३), ६५(३), ७५(६), ९७, १२५, १४८(३), १५८(३), १६४(५), १८६ और २२१)
भाग क :
राष्ट्रपति और १.(***) राज्यों के राज्यपालों के बारे में उपबंध :
१) राष्ट्रपति और १.(***) राज्यों के राज्यपालों को प्रति मास निम्नलिखित उपलब्धियों का संदाय किया जाएगा, अर्थात् :-
राष्ट्रपति – *(पांच लाख रुपए) १०००० रुपए ।
राज्य का राज्यपाल – **(तीन लाख पचास हजार रुपए) ५५०० रुपए ।
२) राष्ट्रपति और २.(***) राज्यों के राज्यपालों को ऐसे भत्तों का भी संदाय किया जाएगा जो इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले क्रमश: भारत डोमिनियन के गवर्नर जनरल को तथा तत्स्थानी प्रांतों के गवर्नरों को संदेय थे ।
३) राष्ट्रपति और ३.(राज्यों) के राज्यपाल अपनी-अपनी संपूर्ण पदावधि में ऐसे विशेषाधिकारों के हकदार होंगे जिनके इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले क्रमश: गवर्नर जनरल और तत्स्थानी प्रांतों के गवर्नर हकदार थे ।
४) जब उपराष्ट्रपति या कोई अन्य व्यक्ति राष्ट्रपति के कृत्यों का निर्वहन कर रहा है या उसके रुप में कार्य कर रहा है या कोई व्यक्ति राज्यपाल के कृत्यों का निर्वहन कर रहा है तब वह ऐसी उपलब्धियों, भत्तों और विशेषाधिकारों का हकदार होगा जिनका, यथास्थिति, वह राष्ट्रपति या राज्यपाल हकदार है जिसके कृत्यों को वह निर्वहन करता है या, यथास्थिति, जिसके रुप में वह कार्य करता है ।
४.(***)
——–
*. वित्त अधिनियम २०१८ (२०१८ का १३) की धारा १३७ द्वारा (१-१-२०१६ से) अब यह पांच लाख रुपए है ।
**. वित्त अधिनियम २०१८ (२०१८ का १३) की धारा १३७ द्वारा (१-१-२०१६ से) अब यह तीन लाख पचास हजार रुपए है ।
१. संविधान (सातवां संशोधन) अधिनियम १९५६ की धारा २९ और अनुसूची द्वारा (१-११-१९५६ से) पहली अनुसूची के भाग क में विनिर्दिष्ट शब्दों और अक्षर का लोप किया गया ।
२. संविधान (सातवां संशोधन) अधिनियम १९५६ की धारा २९ और अनुसूची द्वारा ऐसे विनिर्दिष्ट शब्दों का (१-११-१९५६ से) लोप किया गया ।
३. संविधान (सातवां संशोधन) अधिनियम १९५६ द्वारा ऐसे राज्यों के स्थान पर (१-११-१९५६ से) प्रतिस्थापित ।
४. संविधान (सातवा संशोधन) अधिनियम १९५६ द्वारा भाग ख का (१-११-१९५६ से) लोप किया गया ।

भाग ग :
लोक सभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के तथा राज्य सभा के सभापति और उपसभापति के तथा १.(***) २.(राज्य) की विधान सभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के तथा विधान परिषद् के सभापति और उपसभापति के बारे में उपबंध :
७) लोक सभा के अध्यक्ष और राज्य सभा के सभापति को ऐसे वेतन और भत्तों का संदाय किया जाएगा जो इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले भारत डोमिनियन की संविधान सभा के अध्यक्ष को संदेय थे तथा लोक सभा के उपाध्यक्ष को और राज्य सभा के उपसभापति को ऐसे वेतन और भत्तों का संदाय किया जाएगा जो इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले भारत डोमिनियन की संविधान सभा के उपाध्यक्ष को संदेय थे ।
८) ३.(***) राज्य की विधान सभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष को तथा ४.(राज्य) की विधान परिषद् के सभापति और उपसभापति को ऐसे वेतन और भत्तों का संदाय किया जाएगा जो इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले क्रमश: तत्स्थानी प्रांत की विधान सभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष को तथा विधान परिषद् के सभापति और उपसभापति को संदेय थे और जहां ऐसे प्रारंभ से ठीक पहले तत्स्थानी प्रांत की कोई विधान परिषद् नहीं थी वहां उस राज्य की विधान परिषद् के सभापति और उपसभापति को ऐसे वेतन और भत्तों का संदाय किया जाएगा जो उस राज्य का राज्यपाल अवधारित करे ।
———
१. संविधान (सातवां संशोधन) अधिनियम १९५६ की धारा २९ और अनुसूची द्वारा (१-११-१९५६ से) पहली अनुसूची के भाग क में के किसी राज्य का शब्दों और अक्षर का लोप किया गया ।
२. संविधान (सातवां संशोधन) अधिनियम १९५६ की धारा २९ और अनुसूची द्वारा किसी ऐसे राज्य के स्थान पर (१-११-१९५६ से) प्रतिस्थापित ।
३. संविधान (सातवां संशोधन) अधिनियम १९५६ की धारा २९ और अनुसूची द्वारा पहली अनुसूची के भाग क में विनिर्दिष्ट किसी राज्य का शब्दों और अक्षर का (१-११-१९५६ से) लोप किया गया ।
४. संविधान (सातवां संशोधन) अधिनियम १९५६ की धारा २९ और अनुसूची द्वारा कोई ऐसा राज्य के स्थान पर (१-११-१९५६ से) प्रतिस्थापित ।

भाग घ :
उच्चतम न्यायालय और १.(***) उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों के बारे में उपबंध :
९) २.(१) उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों को वास्तविक सेवा में बिताए समय के लिए प्रति मास निम्नलिखित दर से वेतन का संदाय किया जाएगा, अर्थात् :-
मुख्य न्यायमूर्ति – ३.(१०००० रुपए) *.(२८०००० रुपए).
कोई अन्य न्यायाधीश – ४.(९००० रुपए) **.(२५०००० रुपए).
परंतु यदि उच्चतम न्यायालय का कोई न्यायाधीश अपनी नियुक्ति के समय भारत सरकार की या उसकी पूर्ववर्ती सरकारों में से किसी की अथवा राज्य की सरकार की या उसकी पूर्ववर्ती सरकारों में से किसी की पूर्व सेवा के संबंध में (नि:शक्तता या क्षति पेंशन से भिन्न) कोई पेंशन प्राप्त कर रहा है तो उच्चतम न्यायालय में सेवा के लिए उसके वेतन में से ५.(निम्नलिखित को घटा दिया जाएगा, अर्थात् :-
क) उस पेंशन की रकम ; और
ख) यदि उसने ऐसी नियुक्ति से पहले, ऐसी पूर्व सेवा के संबंध में अपने को देय पेंशन के एक भाग के बदले उसका संराशित मूल्य प्राप्त किया है तो पेंशन के उस भाग की रकम ; और
ग) यदि उसने ऐसी नियुक्ति से पहले, ऐसी पूर्व सेवा के संबंध में निवृत्तिउपदान प्राप्त किया है तो उस उपदान के समतुल्य पेंशन ।)
२) उच्चतम न्यायालय का प्रत्येक न्यायाधीश, बिना किराया दिए, शासकीय निवास के उपयोग का हकदार होगा ।
३) इस पैरा के उपपैरा (२) की कोई बात उस न्यायाधीश को, जो इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले –
क) फेडरल न्यायालय के मुख्य न्यायमूर्ति के रुप में पद धारण कर रहा था और जो ऐसे प्रारंभ पर अनुच्छेद ३७४ के खंड (१) के अधीन उच्चतम न्यायालय का मुख्य न्यायमूर्ति बन गया है, या
ख) फेडरल न्यायालय के किसी अन्य न्यायाधीश के रुप में पद धारण कर रहा था और जो ऐसे प्रारंभ पर उक्त खंड के अधीन उच्चतम न्यायालय का (मुख्य न्यायमूर्ति से भिन्न) न्यायाधीश बन गया है,
उस अवधि में, जिसमें वह ऐसे मुख्य न्यायमूर्ति या अन्य न्यायाधीश के रुप में पद धारण करता है, लागू नहीं होगी और ऐसा प्रत्येक न्यायाधीश, जो इस प्रकार उच्चतम न्यायालय का मुख्य न्यायमूर्ति या अन्य न्यायाधीश बन जाता है, यथास्थिति, ऐसे मुख्य न्यायमूर्ति या अन्य न्यायाधीश के जो इस प्रकार उच्चतम न्यायालय का मुख्य न्यायमूर्ति या अन्य न्यायाधीश बन जाता है यथास्थिति ऐसे मुख्य न्यायमूर्ति या अन्य न्यायाधीश के रुप में वास्तविक सेवा में बिताए समय के लिए इस पैरा के उपपैरा (१) में विनिर्दिष्ट वेतन के अतिरिक्त विशेष वेतन के रुप में ऐसी रकम प्राप्त करने का हकदार होगा जो इस प्रकार विनिर्दिष्ट वेतन और ऐसे वेतन के अंतर के बराबर है जो वह ऐसे प्रारंभ से ठीक पहले प्राप्त कर रहा था ।
४) उच्चतम न्यायालय का प्रत्येक न्यायाधीश भारत के राज्यक्षेत्र के भीतर अपने कर्तव्य पालन में की गई यात्रा में उपगत व्यय की प्रतिपूर्ति के लिए ऐसे युक्तियुक्त भत्ते प्राप्त करेगा और यात्रा संबंधी उसे ऐसी युक्तियुक्त सुविधाएं दी जाएंगी जो राष्ट्रपति समय-समय पर विहित करे ।
५) उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की अनुपस्थिति छुट्टी के (जिसके अंतर्गत छुट्टी भत्ते हैं) और पेंशन के संबंध में अधिकार उन उपबंधों से शासित होंगे जो इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले फेडरल न्यायालय के न्यायाधीशों को लागू थे ।
१०) ६.(१) उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को वास्तविक सेवा में बिताए समय के लिए प्रति मास निम्नलिखित दर से वेतन का संदाय किया जाएगा, अर्थात् :-
मुख्य न्यायमूर्ति – ७.(९००० रुपए) ***.(दो लाख पचास हजार रुपए)
कोई अन्य न्यायाधीश – ८.(८००० रुपए) ****.(दो लाख पच्चीस हजार रुपए :).
परंतु यदि किसी उच्च न्यायालय का कोई न्यायाधीश अपनी नियुक्ति के समय भारत सरकार की या उसकी पूर्ववर्ती सरकारों में से किसी की अथवा राज्य की सरकार की या उसकी पूर्ववर्ती सरकारों में से किसी की पूर्व सेवा के संबंध में (नि:शक्तता या क्षति पेंशन से भिन्न) कोई पेंशन प्राप्त कर रहा है तो उच्च न्यायालय में सेवा के लिए उसके वेतन से निम्नलिखित को घटा दिया जाएगा, अर्थात् :-
क) उस पेंशन की रकम ; और
ख) यदि उसने ऐसी नियुक्ति से पहले, ऐसी पूर्व सेवा के संबंध में अपने को देय पेंशन के एक भाग के बदले में उसका संराशित मूल्य प्राप्त किया है तो पेंशन के उस भाग की रकम; और
ग) यदि उसने ऐसी नियुक्ति से पहले, ऐसी पूर्व सेवा के संबंध में निवृत्ति-उपदान प्राप्त किया है तो उस उपदान के समतुल्य पेंशन ।)
२) ऐसा प्रत्येक व्यक्ति, जो इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले –
क) किसी प्रांत के उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायमूर्ति के रुप में पद धारण कर रहा था और ऐसे प्रारंभ पर अनुच्छेद ३७६ के खंड (१) अधीन तत्स्थानी राज्य के उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायमूर्ति बन गया है, या
ख) किसी प्रांत के उच्च न्यायालय के किसी अन्य न्यायाधीश के रुप में पद धारण कर रहा था और जो ऐसे प्रारंभ पर उक्त खंड के अधीन तत्स्थानी राज्य के उच्च न्यायालय का (मुख्य न्यायमूर्ति से भिन्न) न्यायाधीश बन गया है,
यदि वह ऐसे प्रारंभ से ठीक पहले इस पैरा के उपपैरा (१) में विनिर्दिष्ट दर से उच्चतर दर पर वेतन प्राप्त कर रहा था तो, यथास्थिति, ऐसे मुख्य न्यायमूर्ति या अन्य न्यायाधीश के रुप में वास्तविक सेवा में बिताए समय के लिए इस पैरा के उपपैरा (१) में विनिर्दिष्ट वेतन के अतिरिक्त विशेष वेतन के रुप में ऐसी रकम प्राप्त करने का हकदार होगा जो इस प्रकार विनिर्दिष्ट वेतन और ऐसे वेतन के अंतर के बराबर है जो वह ऐसे प्रारंभ से ठीक पहले प्राप्त कर रहा था ।
९.(३) ऐसा कोई व्यक्ति, जो संविधान (सातवां संशोधन) अधिनिय १९५६ के प्रारंभ से ठीक पहले, पहली अनुसूची के भाग ख में विनिर्दिष्ट किसी राज्य के उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायमूर्ति के रुप में पद धारण कर रहा था और जो ऐसे प्रारंभ पर उक्त अधिनियम द्वारा यथासंशोधित उक्च अनुसूची में विनिर्दिष्ट किसी राज्य के उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायमूर्ति बन गया है, यदि वह ऐसे प्रारंभ से ठीक पहले अपने वेतन के अतिरिक्त भत्ते के रुप में कोई रकम प्राप्त कर रहा था तो, ऐसे मूख्य न्यायमूर्ति के रुप में वास्तविक सेवा में बिताए समय के लिए इस पैरा के उपपैरा (१) में विनिर्दिष्ट वेतन के अतिरिक्त भत्ते के रुप में वही रकम प्राप्त करने का हकदार होगा ।)
११) इस भाग में, जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो, –
क) मुख्य न्यायमूर्ति पद के अंतर्गत कार्यकारी मुख्य न्यायमूर्ति है और न्यायाधीश पद के अंतर्गत तद्र्थ न्यायाधीश है ;
ख) वास्तविक सेवा के अंतर्गत-
एक) न्यायाधीश द्वारा न्यायाधीश के रुप में कर्तव्य पालन में या ऐसे अन्य कृत्यों के पालन में, जिनका राष्ट्रपति के अनुरोध पर उसने निर्वहन करने का भार अपने ऊपर लिया है, बिताया गया समय है ;
दो) उस समय को छोडकर जिसमें न्यायाधीश छुट्टी लेकर अनुपस्थित है, दीर्घावकाश है ; और
तीन) उच्च न्यायालय से उच्चतम न्यायालय को या एक उच्च न्यायालय से दूसरे उच्च न्यायालय को अंतरण पर जाने पर पदग्रहण-काल है ।
———
*. उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय न्यायाधीश (वेतन और सेवा शर्त) संशोधन अधिनियम २०१८ (२०१८ का १०) की धारा ६ के अनुसार (१-१-२०१६ से) अब यह २८०००० रुपए है ।
**. उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय न्यायाधीश (वेतन और सेवा शर्त) संशोधन अधिनियम २०१८ (२०१८ का १०) की धारा ६ के अनुसार (१-१-२०१६ से) अब यह २५०००० रुपए है ।
***. उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय न्यायाधीश (वेतन और सेवा शर्त) संशोधन अधिनियम २०१८ (२०१८ का १०) की धारा २ के अनुसार (१-१-२०१६ से) अब यह दो लाख पचास हजार रुपए है ।
****. उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय न्यायाधीश (वेतन और सेवा शर्त) संशोधन अधिनियम २०१८ (२०१८ का १०) की धारा २ के अनुसार (१-१-२०१६ से) अब यह दो लाख पच्चीस हजार रुपए है ।
१. संविधान (सातवां संशोधन) अधिनियम १९५६ की धारा २९ और अनुसूची द्वारा पहली अनुसूची के भाग क में के राज्यों में शब्दों और अक्षर का (१-११-१९५६ से) लोप किया गया ।
२. संविधान (सातवां संशोधन) अधिनियम १९५६ की धारा २५ द्वारा उपपैरा (१) के स्थान पर (१-११-१९५६ से) प्रतिस्थापित ।
३. संविधान (चौवनवां संशोधन) अधिनियम १९८६ की धारा ४ द्वारा (१-४-१९८६ से) ५००० रुपए के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
४. संविधान (चौवनवां संशोधन) अधिनियम १९८६ की धारा ४ द्वारा (१-४-१९८६ से) ४००० रुपए के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
५. संविधान (सातवां संशोधन) अधिनियम १९५६ की धारा २५ द्वारा उस पेंशन की राशि घटा दी जाएगी के स्थान पर (१-११-१९५६ से) प्रतिस्थापित ।
६. संविधान (सातवां संशोधन) अधिनियम १९५६ की धारा २५ द्वारा उपपैरा (१) के स्थान पर (१-११-१९५६ से) प्रतिस्थापित ।
७. संविधान (चौवनावां सशोधन) अधिनियम १९८६ की धारा २ द्वारा (१-४-१९८६ से) ४००० रुपए के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
८. संविधान (चौवनवां संशोधन) अधिनियम १९८६ की धारा २ द्वारा (१-४-१९८६ से) ३५०० रुपए के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
९. संविधान (सातवां संशोधन) अधिनियम १९५६ की धारा २५ द्वारा उपपैरा (३) और उपपैरा (४) के स्थान पर (१-११-१९५६ से) प्रतिस्थापित ।

भाग ङ :
भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक के बारे में उपबंध :
१२) १) भारत के नियंत्रक-महालेखापरिक्षक को चार हजार रुपए *.(दो लाख पचास हजार रुपए) प्रतिमास की दर से वेतन का संदाय किया जाएगा ।
२) ऐसा कोई व्यक्ति, जो इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले भारत के महालेखापरिक्षक के रुप में पद धारण कर रहा था और जो ऐसे प्रारंभ पर अनुच्छेद ३७७ के अधीन भारत का नियंत्रक-महालेखापरीक्षक बन गया है, इस पैरा के उपपैरा (१) में विनिर्दिष्ट वेतन के अतिरिक्त विशेष वेतन के रुप में ऐसी रकम प्राप्त करने का हकदार होगा जो इस प्रकार विनिर्दिष्ट वेतन और ऐसे वेतन के अंतर के बराबर है जो वह ऐसे प्रारंभ से ठीक पहले भारत के महालेखापरीक्षक के रुप में प्राप्त कर रहा था ।
३) भारत के नियंत्रक-महालेखापरिक्षक की अनुपस्थिति छुट्टी और पेंशन तथा अन्य सेवा-शर्तों के संबंध में अधिकार उन उपबंधों से, यथास्थिति, शासित होंगे या शासित होत रहेंगे जो इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले भारत के महालेखापरिक्षक को लागू थे और उन उपबंधों में गवर्नर जनरल के प्रति सभी निर्देशों का यह अर्थ लगाया जाएगा कि वे राष्ट्रपति के प्रति निर्देश हैं ।
———
*. नियंत्रक-महालेखापरीक्षक (कर्तव्य, शक्तियां तथा सेवा की शर्ते) अधिनियम १९७१ (१९७१ का ५६) की धारा ३ द्वारा भारत के नियंत्रक-महालेखापरिक्षक को उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों के बराबर वेतन का संदाय किया जाएगा । उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय न्यायाधीश (वेतन और सेवा शर्त) संशोधन अधिनियम २०१८ (२०१८ का १०) की धारा ६ द्वारा (१-१-२०१६ से) उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों का वेतन दो लाख पचास हजार रुपए प्रति मास तक बढा दिया गया है ।

Exit mobile version