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Constitution अनुच्छेद २६६ : भारत और राज्यों की संचित निधियां और लोक लेखे ।

भारत का संविधान
अनुच्छेद २६६ :
भारत और राज्यों की संचित निधियां और लोक लेखे ।
१) अनुच्छेद २६७ के उपबंधों के तथा कुछ करों और शुल्कों के शुध्द आगम पूर्णत: या भागत : राज्यों को साँप दिए जाने के संबंध में इस अध्याय के उपबंधों के अधीन रहते हुए, भारत सरकार को प्राप्त सभी राजस्व, उस सरकार द्वारा राज हुंडियां निर्गमित करके, उधार द्वारा या अर्थोपाय अग्रिमों द्वारा लिए गए सभी उधार और उधारों के प्रतिसंदाय मे उस सरकार को प्राप्त सभी धनराशियों की एक संचित निधि बनेगी जो भारत की संचित निधि के नाम से ज्ञात होगी तथा किसी राज्य सरकार को प्राप्त सभी राजस्व, उस सरकार द्वारा राज हुंडियां निर्गमित करके , उधार द्वारा या अर्थोपाय अग्रिमों द्वारा लिए गए सभी उधार और उधारों के प्रतिसंदाय में उस सरकार को प्राप्त सभी धनराशियों की एक संचित निधि बनेगी जो राज्य की संचित निधि के नाम से ज्ञात होगी ।
२)भारत सरकार या किसी राज्य सरकार द्वारा या उसकी और से प्राप्त सभी अन्य लोक धनराशियों, यथास्थिति, भारत के लोक लेखे में या राज्य के लोक लेखे में जमा की जाएंगी ।
३)भारत की संचित निधि या राज्य की संचित निधि में से कोई धनराशियां विधि के अनुसार तथा इस संविधान में उपबंधित प्रयोजनों के लिए और रीति से ही विनियोजित की जाएंगी अन्यथा नहीं ।

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