भारत का संविधान
अनुच्छेद ३२३ख :
अन्य विषयों के लिए अधिकरण ।
१) समुचित विधान-मंडल, विधि द्वारा, ऐसे विवादों, प्ररिवादों या अपराधों के अधिकरणों द्वारा न्यायनिर्णयन या विचारण के लिए उपबंध कर सकेगा जो खंड (२) में विनिर्दिष्ट उन सभी या किन्हीं विषयों से संबंधित हैं जिनके संबंध में ऐसे विधान-मंडल को विधि बनाने की शक्ति है ।
२) खंड (१) में निर्दिष्ट विषय निम्नलिखित हैं, अर्थात्: –
क) किसी कर का उद्ग्रहण, निर्धारण, संग्रहण और प्रवर्तन;
ख) विदेशी मुद्रा, सीमाशुल्क सीमांतों के आर-पार आयात और निर्यात;
ग) औद्योगिक और श्रम विवाद ;
घ) अनुच्छेद ३१क में यथापरिभाषित किसी संपदा या उसमें किन्हीं अधिकारों के राज्य द्वारा अर्जन या ऐसे किन्हीं अधिकारों के निर्वापन या उपांतरण द्वारा या कृषि भूमि की अधिकतम सीमा द्वारा या किसी अन्य प्रकार से भूमि सुधार;
ड) नगर संपत्ति की अधिकतम सीमा;
च) संसद् के प्रत्येक सदन या किसी राज्य विधान-मंडल के सदन या प्रत्येक सदन के लिए निर्वाचन, किन्तु अनुच्छेद ३२९ और अनुच्छेद ३२९ क में निर्दिष्ट विषयों को छोडकर :
छ) खाद्य पदार्थों का (जिनके अंतर्गत खाद्य तिलहन और तेल हैंं ) और ऐसे अन्य माल का उत्पादन, उपापन, प्रदाय और वितरण, जिन्हें राष्ट्रपति, लोक अधिसूचना द्वारा, इस अनुच्छेद के प्रयोजन के लिए आवश्यक माल घोषित करे और ऐसे माल की कीमत का नियंत्रण;
१.(ज) किराया, उसका विनियमन और नियंत्रण तथा किराएदारी संबंधी विवाद्यक, जिनके अंतर्गत मकान मालिकों और किराएदारों के अधिकार, हक और हित हैं 😉
२.(झ) उपखंड (क) से उपखंड ३.(ज) में विनिर्दिष्ट विषयों में से किसी विषय से संबंधित विधियों के विरूध्द अपराध और उन विषयों में से किसी की बाबत फीस ;
२.(ञ ) उपखंड (क) से उपखंड ४.(झ) में विनिर्दिष्ट विषयों में से किसी का आनुषंगिक कोई विषय ।
३) खंड (१) के अधीन बनाई गई विधि-
क) अधिकरणों के उत्क्रम की स्थापना के लिए उपबंध कर सकेगी ;
ख) उक्त अधिकरणों में से प्रत्येक अधिकरण द्वारा प्रयोग की जाने वाली अधिकारिता, शक्तियां (जिनके अंतर्गत अवमान के लिए दंड देने की शक्ति है ) और प्राधिकार विनिर्दिष्ट कर सकेगी ;
ग) उक्त अधिकरणों द्वारा अनुसरण की जाने वाली प्रक्रिया के लिए (जिसके अंतर्गत परिसीमा के बारे में और साक्ष्य के नियमों के बारे में उपबंध हैं ) उपबंध कर सकेगी ;
घ) अनुच्छेद १३६ के अधीन उच्चतम न्यायालय की अधिकारिता के सिवाय सभी न्यायालयों की अधिकारिता का उन सभी या किन्हीं विषयों के संबंध में अपवर्जन कर सकेगी जो उक्त अधिकरणों की अधिकारिता के अंतर्गत आते हैं ;
ड) प्रत्येक ऐसे अधिकरण को उन मामलों के अंतरण के लिए उपबंद कर सकेगी जो ऐसे अधिकरण की स्थापना से ठीक पहले किसी न्यायालय या अन्य प्राधिकारी के समक्ष लंबित हैं और जो, यदि ऐसे वाद हेतुक जिन पर ऐसे वाद या कार्यवाहियां आधारित हैं, अधिकरण की स्थापना के पश्चात् उत्पन्न होते तो ऐसे अधिकरण की अधिकारिता के भीतर होते ;
च) ऐसे अनुपूरक, आनुषंगिक और पारिणामिक उपबंध (जिनके अंतर्गत फीस के बारे में उपबंध हैं ) अंतर्विष्ट कर सकेगी जो समुचित विधान-मंडल ऐसे अधिकरणों के प्रभावी कार्यकरण के लिए और उनके द्वारा मामलों के शीघ्र निपटारे के लिए और उनके आदेशों के प्रवर्तन के लिए आवश्यक समझे ।
४)इस अनुच्छेद के उपबंध इस संविधान के किसी अन्य उपबंध में या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि में किसी बात के होते हुए भी प्रभावी होंगे ।
स्पष्टीकरण :
इस अनुच्छेद में, किसी विेषय के संबंध में, समुचित विधान-मंडल से यथास्थिति, संसद् या किसी राज्य का विधान-मंडल अभिप्रेत है, जो भाग ११ के उपबंधों के अनुसार ऐसे विषय के संबंध में विधि बनाने के लिए सक्षम है ।)
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१.संविधान (पचहत्तरवां संशोधन) अधिनियम, १९९३ की धारा २ द्वारा (१५-५-१९९४ से) अंत:स्थापित ।
२.संविधान (पचहत्तरवां संशोधन) अधिनियम, १९९३ की धारा २ द्वारा (१५-५-१९९४ से) उपखंड (ज) और (झ) को उपखंड (झ) और (ञ) के रूप में पुन: अक्षरांकित किया जाएगा ।
३.संविधान (पचहत्तरवां संशोधन) अधिनियम, १९९३ की धारा २ द्वारा (१५-५-१९९४ से) (छ) के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
४.संविधान (पचहत्तरवां संशोधन) अधिनियम, १९९३ की धारा २ द्वारा (१५-५-१९९४ से) (ज) के स्थान पर प्रतिस्थापित ।