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Bsa धारा १२७ : न्यायाधीश और मजिस्ट्रेट :

भारतीय साक्ष्य अधिनियम २०२३
धारा १२७ :
न्यायाधीश और मजिस्ट्रेट :
कोई भी न्यायाधीश या मजिस्ट्रेट न्यायालय में ऐसे न्यायाधीश या मजिस्ट्रेट के नाते अपने स्वयं के आचरण के बारे में, जिसका ज्ञान उसे ऐसे न्यायाधीश या मजिस्ट्रेट के नाते न्यायालय में हुआ, किन्हीं प्रश्नों का उत्तर देना के लिए ऐसे किसी भी न्यायालय के विशेष आदेश के सिवाय, जिसके वह अधीनस्थ है, विवश नहीं किया जाएगा, किन्तु अन्य बातों के बारे में जो उसकी उपस्थिति में उस समय घटित हुई थी, जब वह ऐसे कार्य कर रहा था, उसकी परीक्षा की जा सकेगी ।
दृष्टांत :
(a) क) सेशन न्यायालय के समक्ष अपने विचारण में (ऐ) कहता है कि अभिसाक्ष्य (बयान) मजिस्ट्रेट (बी) द्वारा अनुचित रुप से लिया गया था । तद्विषयक प्रश्नों का उत्तर देने के लिए (बी) को किसी वरिष्ठ न्यायालय के विशेष आदेश के सिवाय नहीं किया जा सकता ।
(b) ख) मजिस्ट्रेट (बी) के समक्ष मिथ्या साक्ष्य देने का (ऐ) सेशन न्यायालय के समक्ष अभियुक्त है । वरिष्ठ न्यायालय के विशेष आदेश के सिवाय (बी) से यह नहीं पुछा जा सकता है कि (ऐ) ने क्या कहा था ।
(c) ग) (ऐ) सेशन न्यायालय के समक्ष इसलिए अभियुक्त है कि उसने सेशन न्यायाधीश (बी) के समक्ष विचारित होते समय किसी पुलिस ऑफिसर की हत्या करने का प्रयत्न किया । (बी) की यह परीक्षा की जा सकेगी कि क्या घटित हुआ था ।

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