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Bnss धारा ३६९ : अन्वेषण या विचारण के लंबित रहने के दौरान विकृत चित्त व्यक्ति का छोडा जाना :

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता २०२३
धारा ३६९ :
अन्वेषण या विचारण के लंबित रहने के दौरान विकृत चित्त व्यक्ति का छोडा जाना :
१) जब कभी कोई व्यक्ति, चित्त-विकृति या बौद्धिक दिव्यांगता के कारण यदि धारा ३६७ या धारा ३६८ के अधीन प्रतिरक्षा करने में अक्षम पाया जाता है, तब यथास्थिति मजिस्ट्रेट या न्यायालय, चाहे मामला ऐसा है जिसमें जमानत ली जा सकती है या नहीं, ऐसे व्यक्ति को जमानत पर छोडना आदेशित करेगा :
परन्तु यह कि अभियुक्त ऐसी चित्त-विकृति या बौद्धिक दिव्यांगता से ग्रस्त है जो कि अंतरंग रोगी उपचार की आज्ञा नहीं देती तथा कोई मित्र अथवा नातेदार निकटतम चिकित्सीय सुविधा से नियमित बहिर्रोग मनोविकारिकी चिकित्सीय उपचार प्राप्त करने तथा उसको स्वयं का या किसी अन्य व्यक्ति को क्षति कारित करने से निवारित करने का वचन देता है ।
२) यदि मामला ऐसा है, जिसमें यथास्थिति मजिस्ट्रेट या न्यायालय की राय में जमानत मंजूर नहीं की जा सकती या यदि उचित वचन नहीं दिया जाता है तब वह या यह अभियुक्त को ऐसे स्थान पर रखना आदेशित करेगा जहाँ नियमित मनोविकारिकि उपचार उपलब्ध कराया जा सकता है, तथा की गई कार्यवाही की रिपोर्ट को राज्य शासन का देगा :
परन्तु यह कि अभियुक्त का मानसिक स्वास्थ्य स्थापन में निरोध राज्य शासन द्वारा मानसिक स्वास्थ्य देखरेख अधिनियम,२०१७ (२०१७ का १०) के अधीन बनाए गए ऐसे नियमों के अनुसार किया जाएगा, अन्यथा नहीं ।
३) जब कभी कोई व्यक्ति धारा ३६७ या धारा ३६८ के अधीन, चित्त-विकृति या बौद्धिक दिव्यांगता के कारण प्रतिरक्षा करने में अक्षम पाया जाता है, यथास्थिति मजिस्ट्रेट या न्यायालय कारित किए गए कार्य की प्रकृति तथा चित्त विकृतता या बुद्धि-मन्दता के विस्तार को दृष्टि में रखते हुए यह और अवधारित करेगा कि क्या अभियुक्त की विमुक्ति को आदेशित किया जा सकता है :
परन्तु यह कि-
(a) क) यदि चिकित्सीय की राय या विशेषज्ञ की राय के आधार पर यथास्थिति मजिस्ट्रेट या न्यायालय, धारा ३६७ या धारा ३६८ के अधीन यथा उपबन्धित अभियुक्त की उन्मुक्ति को आदेशित करने का विनिश्चय करता है, तब ऐसे छोडे जाने को आदेशित किया जा सकेगा यदि इस बात की पर्याप्त प्रतिभूति दी जाती है कि अभियुक्त को स्वयं को या किसी अन्य व्यक्ति को क्षति कारित करने से निवारित किया जाएगा;
(b) ख) यदि, यथास्थिति, मजिस्ट्रेट या न्यायालय, इस राय का है कि अभियुक्त की उन्मुक्ति को आदेशित नहीं किया जा सकता तो चित्त-विकृति या बौद्धिक दिव्यांगता के व्यक्तियों के लिए आवासीय सुविधा में अभियुक्त के अंतरण को आदेशित किया जा सकता है जिसमें अभियुक्त को देख-रेख तथा उचित शिक्षा तथा प्रशिक्षण प्रदान किया जा सकता है ।

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