Bnss धारा ५१० : आरोप विरचित न करने या उसके अभाव या उसमें गलती का प्रभाव :

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता २०२३
धारा ५१० :
आरोप विरचित न करने या उसके अभाव या उसमें गलती का प्रभाव :
१) किसी सक्षम अधिकारिता वाले न्यायालय का कोई निष्कर्ष, दण्डादेश या आदेश केवल इस आधार पर कि कोई आरोप विरचित नहीं किया गया अथवा इस आधार पर कि आरोप में कोई गलती, लोप या अनियमितता थी, जिसके अन्तर्गत आरोपों का कुसंयोजन भी है, उस दशा में ही अविधिमान्य समझा जाएगा जब अपील, पुष्टिकरण या पुनरिक्षण न्यायालय की राय में उसके कारण वस्तुत: न्याय नहीं हो पाया है ।
२) यदि अपील, पुष्टीकरण या पुनरिक्षण न्यायालय की यह राय है कि वस्तुत: न्याय नहीं हो पाया है तो वह –
(a) क) आरोप विरचित न किए जाने वाली दशा में यह ओदश कर सकता है कि आरोप विरचित किया जाए और आरोप की विरचना के ठीक पश्चात् से विचारण पुन: प्रारंभ किया जाए;
(b) ख) आरोप में किसी गलती, लोप या अनियमितता वाली दशा में यह निदेश दे सकता है कि किसी ऐसी रिती से, जिसे वह ठीक समझे, विरचित आरोप पर नया विचारण किया जाए :
परन्तु यदि न्यायालय की यह राय है कि मामले के तथ्य ऐसे है कि साबित तथ्यों की बाबत् अभियुक्त के विरुद्ध कोई विधिमान्य आरोप नहीं लगाया जा सकता तो वह दोषसिद्धि को अभिखण्डित कर देगा ।

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