भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता २०२३
धारा ४७९ :
अधिकतम अवधि जिसके लिए विचाराधीन कैदी निरुद्ध किया जा सकता है :
१) जहाँ कोई व्यक्ति, किसी विधि के अधीन किसी अपराध के (जो ऐसा अपराध नहीं है जिसके लिए उस विधि के अधीन मृत्युदण्ड या आजीवन कारावास एक दण्ड के रुप में विनिर्दिष्ट किया गया है) इस संहिता के अधीन अन्वेषण, जाँच या विचारण की अवधि के दौरान कारावास की उस अधिकतम अवधि के जो उस विधि के अधीन उस अपराध के लिए विनिर्दिष्ट की गई है, आधे से अधिक की अवधि के लिए निरोध भोग चुका है, वहाँ वह जमानत पर न्यायालय द्वारा छोड दिया जाएगा :
परन्तु ऐसा व्यक्ति प्रथमबार का अपराधी है और अतीत में किसी अपराध के लिए दोषसिद्ध नहीं किया गया है तो वह न्यायालय द्वारा जमानत पर छोड दिया जाएगा यदि वह उस विधि के अधीन ऐसे अपराध के लिए विनिर्दिष्ट कारावास की अधिकतम अवधि की एक-तिहाई विस्तार की अवधि तक निरोध रह चुका है :
परन्तु यह और कि न्यायालय, लोक अभियोजक की सुनवाई के पश्चात् और उन कारणों से जो उस द्वारा लेखबद्ध किए जाएँगे, ऐसे व्यक्ति के उक्त आधी अवधि से दीर्घतर अवधि के लिए निरोध जारी रखने का आदेश कर सकेगा या उसके बंधपत्र के बजाय जमानत पर उसे छोड देगा :
परन्तु यह और कि कोई भी ऐसा व्यक्ति अन्वेषण, जाँच या विचारण की अवधि के दौरान उस विधि के अधीन उक्त अपराध के लिए उपबंधित कारावास की अधिकतम अवधि से अधिक के लिए किसी भी दशा में निरुद्ध नहीं रखा जाएगा ।
स्पष्टीकरण :
जमानत मंजूर करने के लिए इस धारा के अधीन निरोध की अवधि की गणना करने में अभियुक्त द्वारा कार्यवाही में किए गए विलंब के कारण भोगी गई निरोध की अवधि को अपवर्जित किया जाएगा ।
२) उपधारा (१) में अन्तर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी, तथा उसके तीसरे परन्तुक के अधीन रहेत हुए, जहां किसी व्यक्ति के विरुद्ध या एक से अधिक अपराध या बहु मामलों जांच परीक्षण या विरचना के लिए लंबित ह तो उसे न्यायालय द्वारा जमानत पर नहीं छोडा जाएगा ।
३) किसी व्यक्ति का उपधारा (१) में यथाविनिर्दिष्ट उसका आधा निरोध पूर्ण होने पर उसके परंतुक में यथाविनिर्दिष्ट उसका एक-तिहाई निरोध पूर्ण होने पर, तो जेल का अधीक्षक जहां ऐसा व्यक्ति निरुद्ध है, यथास्थिति, उपधारा (१) या उसके परंतुक के अधीन अग्रसर होने हेतु न्यायालय को लिखित में ऐसे व्यक्ति को जमानत पर छोडे जाने हेतु तुरंत आवेदन करेगा ।