भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता २०२३
धारा ४४२ :
उच्च न्यायालय की पुनरिक्षण की शक्तियाँ :
१) ऐसी किसी कार्यवाही के मामले में, जिसका अभिलेख उच्च न्यायालय ने स्वयं मंगवाया है या जिसकी उसे अन्यथा जानकारी हुई है, वह धाराएँ ४२७, ४३०, ४३१ और ४३२ द्वारा अपील न्यायालय को या धारा ३४४ द्वारा सेशन न्यायालय को प्रदत्त शक्तियों में से किसी का स्वविवेकानुसार प्रयोग कर सकता है और जब वे न्यायाधीश, जो पुनरीक्षण न्यायालय में पीठासीन हैं, राय में समान रुप से विभाजित है तब मामले का निपटारा धारा ४३३ द्वारा उपबंधित रीति से किया जाएगा ।
२) इस धारा के अधीन कोई आदेश, जो अभियुक्त या अन्य व्यक्ति पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है, तब तक न किया जाएगा जब तक उसे अपनी प्रतिरक्षा में या तो स्वयं या प्लीडर द्वारा सुने जाने का अवसर न मिल चुका है ।
३) इस धारा की कोई बात उच्च न्यायालय को दोषमुक्ति के निष्कर्ष को दोषसिद्धि के निष्कर्ष में संपरिवर्तित करने के लिए प्राधिकृत करने वाली न समझी जाएगी ।
४) जहाँ इस संहिता के अधीन अपील हो सकती है, किन्तु कोई अपील की नहीं जाती है वहाँ उस पक्षकार की प्रेरणा पर, जो अपील कर सकता था, पुनरिक्षण की कोई कार्यवाही ग्रहण न की जाएगी ।
५) जहाँ इस संहिता के अधीन अपील होती है किन्तु उच्च न्यायालय को किसी व्यक्ति द्वार पुनरीक्षण के लिए आवेदन किया गया है और उच्च न्यायालय का यह समाधान हो जाता है कि ऐसा आवेदन इस गलत विश्वास के आधार पर किया गया था कि उससे कोई अपील नहीं होती है और न्याय के हित में ऐसा करना आवश्यक है तो उच्च न्यायालय पुनरीक्षण के लिए आवेदन को अपील की अर्जी मान सकता है और उस पर तद्नुसार कार्यवाही कर सकता है ।