भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता २०२३
धारा ३९४ :
पूर्वतन सिद्धदोष अपराधी को अपने पते की सूचना देने का आदेश :
१) जब कोई व्यक्ति, जिसे भारत में किसी न्यायालय ने तीन वर्ष या उससे अधिक की अवधि के लिए कारावास से दण्डनीय किसी अपराध के लिए दोषसिद्ध किया है, किसी अपराध के लिए, जो तीन वर्ष या उससे अधिक की अवधि के लिए कारावास से दण्डनीय है, द्वितीय वर्ग मजिस्ट्रेट के न्यायालय से भिन्न किसी न्यायालय द्वारा पुन: दोषसिद्ध किया जाता है तब, यदि ऐसा न्यायालय ठीक समझे तो वह उस व्यक्ति को कारावास का दण्डादेश देते समय यह आदेश भी कर सकता है कि छोडे जाने के पश्चात् उसके निवास स्थान की और ऐसे निवास स्थान की किसी तब्दीली की या उससे उसकी अनुपस्थिति की इसमें इसके पश्चात् उपबंधित रीति से सूचना ऐसे दण्डादेश की समाप्ति की तारीख से पाँच वर्ष से अनधिक अवधि तक दी जाएगी ।
२) उपधारा (१) के उपबंध, उन अपराधों को करने के आपराधिक षडयंत्र और उन अपराधों के दुष्प्रेरण तथा उन्हें करने के प्रयत्नों को भी लागू होते है ।
३) यदि ऐसी दोषसिद्धी अपील में या अन्यथा अपास्त कर दी जाती है तो ऐसा आदेश शुन्य हो जाएगा ।
४) इस धारा के अधीन आदेश अपील न्यायालय द्वारा, या उच्च न्यायालय या सेशन न्यायालय द्वारा भी जब वह अपनी पुनरिक्षण की शक्तियाँ का प्रयोग कर रहा है, किया जा सकता है ।
५) राज्य सरकार, छोडे गए सिद्धदोषों के निवास स्थान की या निवास स्थान की तब्दिली की या उससे उनकी अनुपस्थिति की सूचना से संबंधित इस धारा में उपबंधों को क्रियान्वित करने के लिए नियम अधिसूचना द्वारा बना सकती है ।
६) ऐसे नियम उसके भंग किए जाने के लिए दण्ड का उपबंध कर सकते है और जिस व्यक्ति पर ऐसे किसी नियम को भंग करने का आरोप है उसका विचारण उस जिले में सक्षम अधिकारिता वाले मजिस्ट्रेट द्वारा किया जा सकता है जिसमें उस व्यक्ति द्वारा अपने निवास स्थान के रुप में अन्त में सूचित स्थान है ।