भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता २०२३
धारा ३६६ :
न्यायालयों का खुला होना :
१) वह स्थान, जिसमें कोई दण्ड न्यायालय की अपराध की जाँच या विचारण के प्रयोजन से बैठता है, खुला न्यायालय समझा जाएगा, जिसमें जनता साधारणत: प्रवेश कर सकेगी जहाँ तक कि सुविधापूर्वक वे उसमें समा सकें :
परन्तु यदि पीठासीन न्यायाधीश या मजिस्ट्रेट ठीक समझता है तो वह किसी विशिष्ट मामले की जाँच या विचारण के किसी प्रक्रम में आदेश दे सकता है कि जनसाधारण या कोई विशेष व्यक्ति उस कमरें में या भवन में, जो न्यायालय द्वारा उपयोग में लाया जा रहा है, न तो प्रवेश करेगा, न होगा और न रहेगा ।
२) उपधारा (१) में अन्तर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी, भारतीय न्याय संहिता २०२३ की धारा ६४, धारा ६५, धारा ६६, धारा ६७, धारा ६८, धारा ७० या धारा ७१ के अधीन बलात्संग या किसी अपराध अथवा लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम २०१२ की धारा ४, धारा ६, धारा ८ या धारा १० के अधीन अपराधों की जाँच या उसका विचारण बंद कमरे में किया जाएगा :
परन्तु पीठासीन न्यायाधिश, यदि वह ठिक समझता है तो, या दोनों में से किसी पक्षकार द्वारा आवेदन किए जाने पर, किसी विशिष्ट व्यक्ति को, उस कमरे में या भवन में, जो न्यायालय द्वारा उपयोग में लाया जा रहा है, प्रवेश करने, होने या रहने की अनुज्ञा दे सकता है :
परन्तु यह और कि बन्द कमरें में विचारण, जहाँ तक व्यवहार्य हो, किसी महिला न्यायाधीश या मजिस्ट्रेट द्वारा संचालित किया जाएगा ।
३) जहाँ उपधारा (२) के अधीन कोई कार्यवाही की जाती है वहाँ किसी व्यक्ति के लिए किसी ऐसी कार्यवाही के संबंध में किसी बात को न्यायालय की पूर्व अनुज्ञा के बिना, मुद्रित या प्रकाशित करना विधिपूर्ण नहीं होगा :
परन्तु यह कि बलात्संग से किसी अपराध से सम्बन्धित विचारण कार्यवाही के मुद्रण या प्रकाशन पर प्रतिबन्ध को, पक्षकारों के नाम तथा पतों की गोपनीयता को बनाए रखने के अध्यधीन, समाप्त किया जा सकता है।