भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता २०२३
अध्याय २२ :
संक्षिप्त विचारण :
धारा २८३ :
संक्षिप्त विचारण करने कि शक्ति :
१) इस संहिता में किसी बात के होते हुए भी यदी :-
(a) क) कोई मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ;
(b) ख) कोई प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट,
तो वह निम्नलिखित सब अपराधों का या उनमें से किसी का संक्षेपत: विचारण कर सकता है :-
एक) भारतीय न्याय संहिता २०२३ की धारा ३०३ की उपधारा (२), धारा ३०५, या धारा ३०६ के अधीन चोरी, जहाँ चुराई हुई संपत्ति का मूल्य बीस हजार रुपए से अधिक नहीं है;
दो) भारतीय न्याय संहिता २०२३ की धारा ३१७ की उपधारा (२) के अधीन चोरी की संपत्ति को प्राप्त करना या रखे रखना, जहाँ संपत्ति का मुल्य वीस हजार रुपए से अधिक नहीं है;
तीन) भारतीय न्याय संहिता २०२३ की धारा ३१७ की उपधारा (५) के अधीन चुराई हुई संपत्ति को छिपाने या उसका व्ययन करने में सहायता करना, जहाँ ऐसी संपत्ति का मूल्य बीस हजार रुपए से अधिक नहीं है;
चार) भारतीय न्याय संहिता २०२३ की धारा ३३१ की उपधारा (२) और उपधारा (३) के अधीन अपराध;
पांच) भारतीय न्याय संहिता २०२३ की धारा ३५२ के अधीन लोकशांति भंग कराने को प्रकोपित करने के आशय से अपमान और धारा ३५१ की उपधारा (२) और उपधारा (३) के अधीन आपराधिक अभित्रास;
सहा) पूर्ववर्ती अपराधों में से किसी का दुष्प्रेरण;
सात) पूववर्ती अपराधों में से किसी को करने का प्रयत्न, जब ऐसा प्रयत्न अपराध है;
आठ) ऐसे कार्य से होने वाला कोई अपराध, जिसकी बाबत पशु अतिचार अधिनियम, १८७१ (१८७१ का १) की धारा २० के अधीन परिवाद किया जा सकता है ।
२) मजिस्ट्रेट अभियुक्त को सुनवाई का युक्तियुक्त अवसर प्रदान किए जाने के पश्चात्, ऐसे कारणों से जो अभिलिखित किए जाएं, ऐसे सभी या किन्ही अपराध जो मृत्यु, आजीवन कारावास या तीन वष से अधिक की अवधि के लिए कारावास से दंडनीय नहीं है, का संक्षिप्त विचारण कर सकेगा :
परन्तु इस उपधारा के अधीन किसी मामले का संक्षिप्त विचारण करने के लिए किसी मजिस्ट्रेट के विनिश्चय के विरुद्ध कोई अपील नहीं होगी ।
३) जब संक्षिप्त विचारण के दौरान मजिस्ट्रेट को प्रतीत होता है कि मामला इस प्रकार का है कि उसका विचारण संक्षेपत: किया जाना अवांछनीय है तो वह मजिस्ट्रेट किन्हीं साक्षियों को, जिनकी परिक्षा की जा चुकी है, पुन: बुलाएगा और मामले को इस संहिता द्वारा उपबंधित रिति से पुन: सुनने के लिए अग्रसर होगा ।